छत्तीसगढ़ का लोकपर्व - हलषष्ठी (कमरछठ)
Kamarchhat - कमरछठ (Halshasti ) Festival of Chhattisgarh will be celebrated this year on 28 August 2021.
इस दिन संतान की लंबी उम्र की कामना हेतु महिलाओं द्वारा किये जाने वाले हलछठ(हलषष्ठी) व्रत एवं भगवान श्री कृष्ण के भाई दाऊ की जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को बलराम जयंती भी कहा जाता है।
यह पर्व माताओं का संतान के लिए किया जाने वाला, छत्तीसगढ़ राज्य की अनूठी संस्कृति का एक ऐसा पर्व है जिसे हर वर्ग हर जाति मे बहूत ही सद्भाव से मनाया जाता है। हलषष्ठी को हलछठ, कमरछठ या खमरछठ भी कहा जाता है।
यह पर्व भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। संतान प्राप्ति व उनके दीर्घायू सुखमय जीवन की कामना
रखकर माताएँ इस व्रत को रखती है।
इस दिन माताएँ सूबह से ही महुआ पेड़ की डाली का दातून कर, स्नान कर व्रत धारण करती है।भैस के दुध की चाय पीती है।तथा दोपहर के बाद घर के आँगन में, मंदिर-देवालय या गाँव के चौपाल आदि मे बनावटी तालाब (सगरी) बनाकर , उसमें जल भरते हैं। सगरी का जल, जीवन का प्रतीक है। तालाब के पार में बेर, पलाश, गूलर आदि पेड़ों की टहनियों तथा काशी के फूल को लगाकर सजाते हैं। सामने एक चौकी या पाटे पर गौरी-गणेश, कलश रखकर हलषष्ठी देवी की मुर्ती(भैस के घी में सिन्दुर से मुर्ती बनाकर) उनकी पूजा करते हैं। साड़ी आदि सुहाग की सामग्री भी चढ़ाते हैं। तथा हलषष्ठी माता के छः कहानी को कथा के रूप मे श्रवण करते हैं।
इस पूजन की सामग्री में पसहर चावल(बिना हल जुते हुए जमीन से उगा हुआ धान का चावल), महुआ के पत्ते, धान की लाई, भैस के दुध - दही व घी आदि रखते हैं। बच्चों के खिलौनों जैसे-भौरा, बाटी आदि भी रखा जाता है । बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों मे गेडी(हरियाली त्योहार के दिन बच्चों के चढ़ने के लिए बनाया जाता है) को भी सगरी मे रखकर पूजा करते है क्योंकि गेडी का स्वरूप पूर्णतः हल से मिलता जुलता है तथा बच्चों के ही उपयोग का है।

إرسال تعليق